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7+ Poem In Sanskrit | संस्कृत कविताएं ( LATEST )

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भारत का इतिहास बहुत ही बड़ा और ऐतिहासिक है भारत में बहुत सारे महान गुरु और संतों ने जन्म लिया है और भारत की भाषाएं भी बहुत ज्यादा मशहूर है आज हम बात करने वाले हैं संस्कृत के बारे में आपको बताएंगे Poem in Sanskrit

Poem In Sanskrit


दोस्तों नीचे दिए गए सभी Poems शुद्ध संस्कृत में लिखी गई हैं उम्मीद करते हैं आपको यह Poems in Sanskrit पसंद आएंगे यह सभी Poems हमने खुद लिखी हैं आप इन्हें 1-1 कर पढ़ सकते हैं |

तुलसीदास ( दोहावली )

श्री गुरु चरन सरोज रज , निज मन मुकुरु सुधारि ।

बरनऊँ रघुबर विमल जसु , जो दायकु फल चारि । 1

राम नाम मनी दीप धरु , जीह देहरी द्वार ।

तुलसी भीतर बाहर हैं , जो चाहसि उजियार । । 2

जड़ चेतन गुन दोषभय , विस्व कीन्ह करतार ।

संत हंस गुन गहहिं पय , परिहरि बारि विकार । । 3

प्रभु तरुतर कपि डार पर , ते किए आप समान ।

तुलसी कहुँ न राम से , साहिब सील निधान । । 4

तुलसी ममता राम सो , समता सब संसार ।

राग न रोष न दोष दु : ख , दास भए भव पार । । 5

गिरिजा संत समागम सम , न लाभ कछु आन

बिनु हरि कृपा न होइ सो , गावहिं वेद पुरान । 6

पर सुख संपति देखि सुनि , जरहिं जे जड़ बिनु आगि ।

तुलसी तिन के भाग ते , चलै भलाई भागि । । 7

सचिव वैद गुरु तीनि जो , प्रिय बोलहि भयु आस ।

राज , धर्म , तन तीनि कर , होइ बेगिही नास । । 8

साहब ते सेवक बड़ो , जो निज धरम सुजान ।

राम बाँध उतरै उद्धि , लांधि गए हनुमान । । 9

बिन बिस्वास भगति नहि , तेहि विनु द्रवहिं न राम ।

राम कृपा बिनु सपनेहुँ , जीवन लह विश्राम । । 10

मीराबाई ( पदावली )

Poem In Sanskrit


बसौ मेरे नैनन में नन्द लाल ।

मोहनि मूरति साँवरी सूरति नैना बनै विसाल ।

मोर मुकुट मकराकृत कुंडल अरुण तिलक दिये भाला

अधर सुधारस मुरली राजति उर वैजन्ती माल ।

छुद्र घंटिका कटि तट सोभित नुपूर शब्द रसाल ।

मीरा प्रभु सन्तन सुखदाई भक्त बछल गोपाल । । ( 1 )

मेरे तो गिरिधर गोपाल , दूसरो न कोई ।

जाके सिर मोर मुकुट , मेरो पति सोई । ।

तात मात भ्रात बंधु , आपनो न कोई ।

छोड़ि दई कुल की कानि , कहा करै कोई ।

संतन ढिग बैठि बैठि , लोक लाज खोई ।

अँसुअन जल सींचि सींचि , प्रेम बेलि बोई ।

अब तो बेलि फैल गई , आनंद फल होई । ।

भगत देखि राजी भई , जगत देखि रोई ।

दासी मीरा लाल गिरधर , तारौ अब मोही । ( 2 )

नीति के दोहे

रहीम


कहि रहीम सम्पति सगे , बनत बहुत बहु रीत ।

विपत कसौटी जे कसे , सोई साँचै मीत । । ( 1 )

एकै साधे सब सधै , सब साधै सब जाय ।

रहिमन सींचे मूल को , फूलै फलै अधाय । । ( 2 )

तरुवर फल नहिं खात हैं , सरवर पियहिं न पान ।

कहि रहीम पर काज हित , सम्पति संचहिं सुजान । । ( 3 )

रहिमन देखि बड़ेन को , लघु न दीजिये डारि ।

जहाँ काम आवे सुई , का करे तरवारि । । ( 4 )

बिहारी

कनक कनक ते सौ गुनी , मादकता अधिकाय ।

बह खाये बौरात है , यह पाये बौराय । । ( 5 )

इहि आशा अटक्यो रहै , अलि गुलाब के मूल ।

हो इहै बहुरि बसन्त ऋतु , इन डारनि पै फूल । । ( 6 )

सोहतु संग समानु सो , यहै कहै सब लोग ।

पान पीक ओठनु बनैं , नैननु काजर जोग । । ( 7 )

गुनी गुनी सबकै कहैं , निगुनी गुनी न होतु ।

सुन्यौ कहूँ तरू अरक तें , अरक - समान उदोतु । । ( 8 )

वृन्द

करत करत अभ्यास के , जड़मति होत सुजान ।

रसरी आवत जात ते , सिल पर परत निसान । । ( 9 )

फेर न है है कपट सों , जो कीजै व्यापार ।

जैसे हाँडी काठ की , चढ़े न दूजी बार । । ( 10 )

मधुर वचन ते जात मिट , उत्तम जन अभिमान ।

तनिक सीत जल सों मिटे , जैसे दूध उफान । । ( 11 )

अरि छोटो गनिये नहीं , जाते होत बिगार ।

तृण समूह को तनिक में , जारत तनिक अंगार । । ( 12 )

हम राज्य के लिए मरते है

हम राज्य लिए मरते हैं ।

सच्चा राज्य परन्तु हमारे कर्षक ही करते हैं ।

जिनके खेतों में है अन्न ,

कौन अधिक उनसे सम्पन्न ?

पत्नी - सहित विचरते हैं वे , भव वैभव भरते हैं ,

हम राज्य लिए मरते हैं ।

वे गोधन के धनी उदार ,

उनको सुलभ सुधा की धार ,

सहनशीलता के आगर वे श्रम सागर तरते हैं ।

हम राज्य लिए मरते हैं ।

यदि वे करें , उचित है गर्व ,

बात बात में उत्सव - पर्व ,

हम से प्रहरी रक्षक जिनके , वे किससे डरते हैं ?

हम राज्य लिए मरते हैं ।

करके मीन मेख सब ओर ,

किया करें बुध वाद कठोर ,

शाखामयी बुद्धि तजकर वे मूल धर्म धरते हैं ।

हम राज्य लिए मरते हैं ।

होते कहीं वही हम लोग ,

कौन भोगता फिर ये भोग ?

उन्हीं अन्नदाताओं के सुख आज दुःख हरते हैं ।

हम राज्य लिए मरते हैं ।

गाता खग


गाता खग प्रातः उठकर -

सुंदर , सुखमय जग - जीवन !

गाता खग संध्या - तट पर -

मंगल , मधुमय जग - जीवन ।

कहती अपलक तारावलि

अपनी आँखों का अनुभव ,

अवलोक आँख आँसू की

भर आतीं आँखें नीरव !

हँसमुख प्रसून सिखलाते

पल भर है , जो हँस पाओ ,

अपने उर की सौरभ से

जग का आँगन भर जाओ !

उठ - उठ लहरें कहतीं यह =

हम कूल विलोक न पाएँ ,

पर इस उमंग में बह - बह

नित आगे बढ़ती जाएँ ।

कँप कँप हिलोर रह जाती

रे मिलता नहीं किनारा ।

बुबुद् विलीन हो चुपके

पा जाता आशय सारा ।

जड़ की मुसकान


जड़ की मुसकान एक दिन तने ने भी कहा था , जड़ ?

जड़

तो जड़ ही है :

जीवन से सदा डरी रही है ,

और यही है उसका सारा इतिहास

कि जमीन में मुँह गड़ाए पड़ी रही है

लेकिन मैं जमीन से ऊपर उठा ,

बाहर निकला ,

बढ़ा हूँ

मजबूत बना हूँ ,

इसी से तो तना हूँ ।

एक दिन डालों ने भी कहा था ,

तना ?

किस बात पर है तना ?

जहां बिठाल दिया गया था वहीं पर है बना ;

प्रगतिशील जगती में तिल भर नहीं डोला है ,

खाया है , मोटाया है , सहलाया चोला है ;

लेकिन हम तने से फूटीं ,

दिशा - दिशा में गई

ऊपर उठीं ,

नीचे आई

हर हवा के लिए दोल बनीं , लहराईं ,

इसी से तो डाल कहलाई ।

एक दिन पत्तियों ने भी कहा था ,

डाल ?

डाल में क्या है कमाल ?

माना वह झूमी , झुकी , डोली है

ध्वनि - प्रधान दुनिया में

एक शब्द भी वह कभी बोली है ?

लेकिन हम हर - हर स्वर करती हैं

मर्मर स्वर मर्मभरा भरती हैं ,

नूतन हर वर्ष हुई ,

पतझर में झर

बहार - फूट फिर छहरती हैं ,

विथकित - चित पंथी का

शाप - ताप हरती हैं ।

एक दिन फूलों ने भी कहा था ,

पत्तियाँ ?

पत्तियों ने क्या किया ?

संख्या के बल पर बस डालों को छाप लिया .

डालों के बल पर ही चल - चपल रही हैं , ।

हवाओं के बल पर ही मचल रही हैं

लेकिन हम अपने से खले , खिले . फले हैं

रंग लिए , रस लिए , पराग लिए

हमारी यश - गंध दूर - दूर - दूर फैली है ,

भ्रमरों ने आकर हमारे गुन गाए हैं ,

हम पर बौराए हैं ।

सबकी सुन पाई है ,

जड़ मुसकराई है !

Sanskrit Poem on Trees Video



तो दोस्तों यह थी हमारी Top 5 Poem in Sanskrit हमें पूरी उम्मीद है कि आपको यह पसंद आई होंगी अगर आपको इन Poems में कोई भी गलती लगती है तो आप हमें कमेंट करके जरूर बताएं और अगर आप हमारे लिए कोई Poem लिखना चाहते हैं तो आप हमें Contact us पेज से Contact कर सकते हैं हम आपकी Poem को हमारी Website पर पब्लिश करेंगे धन्यवाद |

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